अपना उदयपुर – by Sumit Patel

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अपना उदयपुर

पिछोला सी झील यहाँ पर , फतह सागर की पाल है ।
मोती मंगरी बसी यहाँ पे , जो राणा की शान है ।।
हर पल लगती भीड़ यहाँ पर ,ये दूध तलाई का कमाल है ।।
उसके ऊपर सजता देखो , माँ करणी का धाम है ।।

गूँजे हरदम भक्ति गीत , वो जगदीश मन्दिर सा धाम यहाँ ।
गुलाब बाग के पेड़ सुनहरे , देते सबको छाव यहाँ।।
लाखो फूल सजाये बैठा , राजीव गांधी पार्क भी है।।
बिच झील में तैर रहा , वो नेहरू गांधी पार्क भी है ।।

रात सुनहरी चमकाती है ,सज्जन गढ़ की वादी मे ।
आधी टोली मिल जाती है , सहेलियों की बाड़ी में ।।
स्वरूप सागर भी सजता देखो, रिमझिम शीतल पानी से।।
दिप तैरते देखोगे तुम , गणगौर घाट के पानी में।।

कोयल की वो सुंदर वाणी , सबका दिल लुभाती है ,
अमराई की शाम यहाँ पे , सबके मन को भाति है ।।
सिटी पैलेस में बड़ी हस्तिया विचरण करने आती है ,
बड़ी लेक पे युवा टोलिया रोज घुमने जाती है।।

कला ,संस्कृति और सभ्यता का सबसे ज्यादा मान यहाँ ।।
पुरातत्व कालो में मिलता है आहड को सम्मान यहाँ।।
नगर निगम के मेले में सुन्दर सजता बाजार जहाँ ,
शिल्पग्राम मेले से मिलता संस्कृति का ज्ञान जहाँ ।।

बारिश का मौसम यहाँ का हसी वादियो से कम नही ,
अपना नगर उदयपुर मानो काश्मीर से कम नही ।

रचना – ✍ सुमित पटेल

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